जब झिझक हो
संकोचवश
कुछ कह न पाओ
जब हृदय की बात को
तुम जीभ पर
बिल्कुल न लाओ
जब हृदय में कोई कर ले घर
बिन पूछे बताये
और तुम उसको छिपाओ
न भटको सत्य से
पर सत्य का आभास तुम सबको कराओ
तो समझो हो गई अनुकूल जलवायु
छायावाद को।
संकोचवश
कुछ कह न पाओ
जब हृदय की बात को
तुम जीभ पर
बिल्कुल न लाओ
जब हृदय में कोई कर ले घर
बिन पूछे बताये
और तुम उसको छिपाओ
न भटको सत्य से
पर सत्य का आभास तुम सबको कराओ
तो समझो हो गई अनुकूल जलवायु
छायावाद को।
2 टिप्पणियां:
त्रुटि संशोधन ....
... और तुम उसको छुपाओ।
सच्चाई कहते जब लगे डर
हर बात को थोड़ा घुमाओ
... न भटको सत्य से
पर सत्य का आभास तुम सबको कराओ।
लेखक : प्रतुल वशिष्ठ
... न भटको सत्य से
पर सत्य का आभास तुम सबको कराओ।
Awesome !
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